भारत में महिला सशक्तिकरण: तथ्य और विचार
महिला सशक्तिकरण एक ऐसा विषय है जो भारत जैसे विविधतापूर्ण और विकासशील देश में सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रगति का आधार बन चुका है। यह केवल महिलाओं को अधिकार प्रदान करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज के समग्र विकास का एक अनिवार्य हिस्सा है। भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन अभी भी कई चुनौतियाँ बाकी हैं। इस लेख में तथ्यों और विचारों के माध्यम से भारत में महिला सशक्तिकरण की स्थिति, प्रगति और भविष्य की संभावनाओं पर प्रकाश डाला गया है।
महिला सशक्तिकरण का अर्थ है महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक क्षेत्रों में स्वतंत्रता, समानता और निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करना। यह न केवल लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है, बल्कि राष्ट्रीय विकास में भी योगदान देता है। विश्व बैंक के अनुसार, जब महिलाएँ आर्थिक रूप से सक्रिय होती हैं, तो देश की जीडीपी में 15-20% तक की वृद्धि हो सकती है। भारत में, जहाँ आबादी का लगभग आधा हिस्सा महिलाएँ हैं, उनकी भागीदारी के बिना समग्र विकास की कल्पना अधूरी है। भारत सरकार ने महिला सशक्तिकरण के लिए कई योजनाएँ और नीतियाँ लागू की हैं।
शिक्षा और जागरूकता: बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना ने लड़कियों की शिक्षा और लिंगानुपात में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया है। राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के तहत, 2001 में 54% की तुलना में 2021 तक महिलाओं की साक्षरता दर बढ़कर 70.3% हो गई है। आर्थिक सशक्तिकरण: मुद्रा योजना और स्टैंड-अप इंडिया जैसी योजनाओं ने महिलाओं को उद्यमिता के लिए ऋण और समर्थन प्रदान किया है। 2023 तक, मुद्रा योजना के तहत 68% लाभार्थी महिलाएँ थीं। कानूनी अधिकार: घरेलू हिंसा अधिनियम (2005), कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न निवारण अधिनियम (2013), और मातृत्व लाभ अधिनियम जैसे कानूनों ने महिलाओं को सुरक्षा और समानता प्रदान की है। राजनीतिक भागीदारी: पंचायती राज संस्थानों में 50% आरक्षण ने ग्रामीण स्तर पर महिलाओं की नेतृत्व क्षमता को बढ़ाया है। 2023 में, भारत में 1.4 मिलियन से अधिक निर्वाचित महिला प्रतिनिधि थीं। सामाजिक बदलाव: स्वच्छ भारत अभियान और उज्ज्वला योजना जैसी पहलों ने महिलाओं के जीवन को आसान बनाया है, जिससे उनकी स्वास्थ्य और समय की बचत हुई है।
प्रगति के बावजूद, भारत में महिला सशक्तिकरण की राह में कई चुनौतियाँ हैं। विश्व आर्थिक मंच के लैंगिक समानता सूचकांक (2023) में भारत 135 देशों में 127वें स्थान पर है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (2022) के अनुसार, भारत में हर घंटे महिलाओं के खिलाफ हिंसा के 50 मामले दर्ज होते हैं। केवल 23% महिलाएँ भारत की कार्यशक्ति का हिस्सा हैं, जो वैश्विक औसत (47%) से काफी कम है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह आँकड़ा और भी कम है। पितृसत्तात्मक मानसिकता, बाल विवाह, और दहेज जैसी प्रथाएँ अभी भी कई क्षेत्रों में प्रचलित हैं। यूनिसेफ के अनुसार, भारत में 27% लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पहले हो जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों की स्कूल ड्रॉपआउट दर और कुपोषण की समस्या अभी भी गंभीर है।
महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए बहुआयामी कदम उठाए जाने आवश्यक हैं। सबसे पहले लड़कियों के लिए मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए, विशेष रूप से ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में, जहाँ शिक्षा तक पहुँच अब भी चुनौती बनी हुई है। इसके साथ ही डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देना भी समय की माँग है, ताकि महिलाएँ तकनीकी रूप से सक्षम हो सकें। तकनीकी और व्यावसायिक प्रशिक्षण के माध्यम से महिलाओं को रोजगार और उद्यमिता के अवसरों के लिए तैयार करना जरूरी है। वहीं दूसरी ओर, महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा को रोकने के लिए कठोर कानूनों का प्रभावी क्रियान्वयन और व्यापक जागरूकता अभियान चलाना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, महिलाओं को स्टार्टअप और छोटे उद्यमों के लिए आसान ऋण और मेंटरशिप की सुविधा दी जानी चाहिए, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें। समाज में वास्तविक लैंगिक समानता तभी स्थापित होगी जब पुरुषों और समुदायों को भी संवेदनशील बनाया जाए और पितृसत्तात्मक मानसिकता में बदलाव लाया जाए।
महिला सशक्तिकरण भारत के विकास का आधार है। यह केवल महिलाओं का मुद्दा नहीं, बल्कि पूरे समाज की प्रगति का प्रश्न है। सरकार, समाज और व्यक्तियों को मिलकर इस दिशा में कार्य करना होगा। शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता, और सामाजिक समानता के माध्यम से महिलाएँ न केवल अपने लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकती हैं। भारत में महिलाओं की प्रगति तब तक अधूरी रहेगी, जब तक हर महिला को अपनी पूरी क्षमता तक पहुँचने का अवसर न मिले। यह एक दीर्घकालिक यात्रा है, जिसमें सतत प्रयास और सामूहिक जिम्मेंदारी की आवश्यकता है