यह दुर्भाग्य है, किसान का बेटा किसान बनना नहीं चाहता
राजकुमार मलगाया (स्वतंत्र लेखक)
भारत देश की पूरी अर्थव्यवस्था कृषि क्षेत्र पर निर्भर है, और देश के 60% ग्रामों में किसान किसानी करते हैं। उसी आधार पर पूरी अर्थव्यवस्था चलती है, पर जैसे हम विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं, वैश्विक स्तर पर भी हम जिस प्रकार से विश्व की दौड़ में आगे हैं, लेकिन यह दुर्भाग्य है,आजकल जब छोटे-छोटे ग्रामों में जाना होता है तो देखा जाता है कि कोई भी किसान नहीं चाहता कि उसका बेटा किसानी करें। क्योंकि उसकी आमदनी तो कम है, खर्च ज्यादा है अगर हम एक एकड़ की लागत की बात करें तो उसे उसे लागत का मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है जिस प्रकार से वह 3 से 4 महीने मेहनत करता है, तन मन धन से परंतु जब बात आती है उसकी मूल फसल को बेचने की तो उसका मूल्य उससे तय नहीं करना पड़ता है।
इस देश के अंदर हर वस्तु का मूल्य तय करने के लिए उसके मलिक को हक है लेकिन किसान को अपनी अपनी फसल का मूल्य तय करने का अधिकार नहीं है। मान सकते हैं, कि पहले की सरकार का प्लान होगा कि वह उसकी फसल का भाव तय नहीं कर सकता परंतु उसके दुष्परिणाम इसलिए देखने को मिलते हैं कि देश में लगभग हर साल 10% किसान आत्महत्या करते हैं और उसका कारण होता है कर्ज और यह कर्ज इसलिए होता है वह चाहता है कि मैं मेरी फसल अच्छी पैदावार करूं ताकि मुझे अच्छा दाम मिल सके इसलिए वह नए-नए कीटनाशक पदार्थ का वह उपयोग करता है, फिर भी उन्हें उनकी मेहनत का फल नहीं मिल पाता है। आज शिक्षा के बढ़ते हुए क्षेत्र को देखते हुए हर किसान चाहता है कि मेरा बच्चा पढ़ लिखकर कोई नौकरी प्राप्त कर ले किसान ना बने क्योंकि उन्होंने किसानी के दौर को देखा है और आज जो परिस्थितियों हैं वर्तमान में इसको देखकर तो यह कहा जा सकता है कि अभी भी राज्य सरकार केंद्र सरकार जिन योजनाओं का निर्णय किसानों के हित में लेती है क्या? वह एक सामान्य छोटे किसान तक पहुंच रही है? इस विषय की समीक्षा उन्हें करना चाहिए क्योंकि हमारा राष्ट्र किसान की आमदनी पर निर्भर है आप कोई से भी क्षेत्र में चले जाइए इलेक्ट्रॉनिक हो या इंफ्रास्ट्रक्चर इन सभी का सीधा संबंध किसान से होता है। और जब तक किसानों को उसकी फसल का मूल्य तय करने का अधिकार प्राप्त नहीं होगा मैं मानता हूं कि आने वाले समय में किसान व किसानों की स्थिति बहुत दयनीय होने वाली है केंद्र सरकार राज्य सरकार ने ऐसे ठोस निर्णय करना चाहिए ताकि कृषि क्षेत्र के प्रति जो भाव आज के युवा पीढ़ी में उत्पन्न हो रहे हैं वह खत्म हो सके वह कृषि के प्रति एक उन्नत दृष्टिकोण बने पशुपालन से लेकर फसलों के द्वारा बनाई जाने वाली खाद्य सामग्रियों के शहर व ग्राम स्तर तहसील स्तर पर ऐसी फैक्ट्रियां बने जहां डायरेक्ट किसान अपनी फसल भेज सके और उसके प्रोडक्ट बनकर उसका आदान-प्रदान आप देश व विश्व में स्तर पर कर सके। बीच के बिचौलिया से किसान बच सकें। वरना योजनाएं बनती रहेगी सरकारी आते रहेगी जाते रहेगी और किसान की स्थिति निचले स्तर पर चली जाएगी। सोयाबीन,मक्का, कपास यह बारिश की फसल है। इनका मूल्य निर्धारण किसान की आर्थिक स्थितियों पर असर ना डालें उस हिसाब से मूल्य तय किया जाए । उन्हें उनका लागत मूल्य दिया जाए ऐसे बहुत से महत्त्वपूर्ण विषय हैं, जिस पर समीक्षा करना चाहिए। सरकार चाहे तो निश्चित रूप से इसका सकारात्मक रिजल्ट हमको देखने को मिल सकता है। हर साल अपनी मांगों को लेकर किसानों को आंदोलन करना पड़ता है, क्या इन आंदोलन पर कभी समीक्षा होती है? अगर नहीं होती है तो भविष्य में इसका हमारे राष्ट्र पर क्या असर होगा यह कभी हम सोच रहे हैं ?व्यापारियों के लिए सरकार हर साल टैक्स कम करती है। पर किसानी में काम आने वाली मशीन वस्तुएं हैं, उनको टैक्स फ्री करती है क्या? 7 लाख का ट्रैक्टर 10 लाख रुपए में आता है 3 लाख रुपए टैक्स व व्यापारियों के पास जाता है।बीच के व्यापारियों की आमदनियां बढ़ती रहती है। छोटे-छोटे विषय हैं जिन पर सरकार को सोचना चाहिए और महत्वपूर्ण कदम उठाना चाहिए। वरना कृषि का दायरा कम होते जाएगा। और कोई किसान नही चाहेगा की उंसका बेटा किसान बने और किसानी करे। जिसका परिणाम हमारे सामने है।
नोट: ✍🏻 ( लेखक के यह निजी विचार हैं )