शिक्षा का अधिकार अधिनियम
समावेशी भविष्य का आधार शिक्षक दिवस, जो 5 सितंबर को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के सम्मान में मनाया जाता है, शिक्षकों की अमूल्य भूमिका को रेखांकित करता है। यह दिन हमें शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE Act, 2009) जैसे क्रांतिकारी कदमों की याद दिलाता है, जो भारत में शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाता है। 1 अप्रैल 2010 से लागू यह अधिनियम 6 से 14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करता है।
शिक्षक, जो इस अधिनियम के मेरुदंड हैं, न केवल ज्ञान बांटते हैं, बल्कि सामाजिक समानता और सशक्तीकरण का मार्ग प्रशस्त करते हैं। RTE ने भारत को एक समावेशी और शिक्षित समाज की ओर अग्रसर किया है, लेकिन इसमें नए विचारों का समावेश इसे और प्रभावी बना सकता है। RTE अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 21(क) के तहत लागू हुआ, जो 86वें संशोधन (2002) से प्रेरित था। इसके प्रावधानों में हैंपड़ोस के स्कूलों में प्रवेश, निःशुल्क शिक्षा, बुनियादी सुविधाएं जैसे कक्षाएं, पुस्तकें, मध्याह्न भोजन और खेल का मैदान। धारा 12(1)(c) निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर और वंचित वर्गों (EWS/SC/ST/OBC) के लिए 25% सीटें आरक्षित करती है। कक्षा 8 तक कोई बच्चा फेल नहीं होगा (हालांकि 2019 के संशोधन ने कक्षा 5 और 8 में परीक्षा शुरू की), और ड्रॉपआउट बच्चों के लिए विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था है।
शिक्षकों के लिए B.Ed. और TET अनिवार्य हैं, जो शिक्षण की गुणवत्ता सुनिश्चित करते हैं। ये प्रावधान शिक्षा को समावेशी बनाते हैं, जहां शिक्षक बच्चों के समग्र विकास के लिए मार्गदर्शक बनते हैं। RTE की उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं। 2009-2016 के बीच ऊपरी प्राथमिक स्तर पर नामांकन 19.4% बढ़ा। ASER 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, केवल 3.1% बच्चे 6-14 वर्ष की आयु में स्कूल से बाहर हैं। 25% आरक्षण के तहत 50 लाख से अधिक बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ रहे हैं। लड़कियों का नामांकन बढ़ा, और रिटेंशन रेट 2024-25 में 91% रहा। समग्र शिक्षा योजना ने स्कूलों में डिजिटल बोर्ड और पुस्तकालय जैसी सुविधाएं बढ़ाईं। शिक्षकों की मेहनत ने RTE को SDG 4 (गुणवत्तापूर्ण शिक्षा) की दिशा में ले जाने में योगदान दिया। हालांकि, चुनौतियां बरकरार हैं। ASER रिपोर्ट्स बताती हैं कि बेसिक पढ़ाई-लिखाई में बच्चे कमजोर हैं। शिक्षकों की कमी (लगभग 4.8 लाख रिक्त पद), अपर्याप्त प्रशिक्षण और कम बजट (GDP का 4% से कम) बाधाएं हैं। निजी स्कूलों में आरक्षण का अनुपालन कम है, और ड्रॉपआउट दर, विशेषकर ग्रामीण लड़कियों में, महामारी के बाद बढ़ी। 0-6 और 14-18 वर्ष के बच्चों को शामिल न करना अधिनियम की सीमा है। RTE को और प्रभावी बनाने के लिए निम्नलिखित नवाचार किए जा सकते हैं जिसमें डिजिटल शिक्षा का विस्तार, ग्रामीण क्षेत्रों में स्मार्ट क्लासरूम और ऑनलाइन शिक्षण मॉड्यूल शुरू किए जाने चाहिए। शिक्षकों को AI-आधारित शिक्षण उपकरणों का प्रशिक्षण दिया जाए, जो व्यक्तिगत सीखने की जरूरतों को पूरा करें।
RTE को 3-18 वर्ष तक विस्तारित करें, ताकि प्री-प्राइमरी और माध्यमिक शिक्षा भी शामिल हो। इससे बच्चों का समग्र शैक्षिक विकास होगा। शिक्षकों के लिए नियमित ऑनलाइन री-स्किलिंग प्रोग्राम शुरू की जाना चाहिए, जिसमें मानसिक स्वास्थ्य, समावेशी शिक्षा और तकनीकी प्रशिक्षण शामिल हो। शिक्षकों को प्रोत्साहन के रूप में वेतन वृद्धि और पुरस्कार दिए जाएं।
अभिभावकों और स्थानीय समुदायों को स्कूल प्रबंधन समितियों (SMC) में सक्रिय करें। यह ड्रॉपआउट रोकने और स्थानीय मुद्दों को संबोधित करने में मदद करेगा। कक्षा 6 से ही बच्चों को व्यावसायिक कौशल सिखाया जाना चाहिए, ताकि वे आत्मनिर्भर बनें और शिक्षा को रोजगार से जोड़ा जाए। शिक्षक दिवस पर, हमें शिक्षकों को RTE का सच्चा ध्वजवाहक बनाना होगा। वे न केवल ज्ञान देते हैं, बल्कि बच्चों में आत्मविश्वास और सामाजिक चेतना जगाते हैं। RTE को मजबूत करने के लिए सरकार, शिक्षक और समाज को मिलकर काम करना होगा। डिजिटल नवाचार, समावेशी नीतियां और शिक्षक सशक्तीकरण से हम एक शिक्षित, सशक्त भारत का निर्माण करेंगे। RTE न केवल कानून है, बल्कि एक सपना है, जिसे शिक्षकों के समर्पण से साकार किया जा सकता है। कुछ अनुसूचित जन जाति के बच्चें जो आधार कार्ड और समग्र आई न बन्ने के कारण स्कूल में प्रवेश नहीं ले पाते हैं। खाशकर मध्य प्रदेश केे आदिवासी गांवों में विशेष शिवर लगवाना चाहिए, ताकि कोई भी बच्चा किसी डाक्यूमेंट के न बनने पर शिक्षा से वंचित नहीं होना चाहिए।
![]() |
डॉ. नितिन भगौरिया (मीडिया शिक्षक / लेखक) यह लेखक के अपने निजी व मौलिक विचार हैं। |