हर साल भारत देश में वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आदि शंकराचार्य का प्राकट्योत्सव मनाया जाता है। इस बार यह तिथि 25 अप्रैल 2023 दिन मंगलवार को है। आदि शंकारचार्य की मुख्य भूमिका हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में अहम मानी जाती है। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, आदि शंकराचार्य को महज 8 साल की अल्प आयु में ही वेदों का ज्ञान प्राप्त हो गया था। आदि शंकराचार्य ने ही देश के चार धामों में सनातन परंपरा को एक सूत्र में बांधकर रखने के लिए 4 मठों की स्थापना की थी। आइए इस विषय में और अधिक जानते हैं...

आदि शंकराचार्य का जन्म 788 ईस्वी में केरल के मालाबार क्षेत्र के कालड़ी में नम्बूद्री ब्राह्मण शिवगुरु एवं आर्याम्बा के यहां हुआ था। प्रचलित कहानियों के अनुसार, आदि शंकराचार्य के माता-पिता ने पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान शिव की आराधना की। दंपत्ति की मनोकामना थी कि उनकी संतान का यश दूर-दूर तक फैले। दंपत्ति की आराधना से भगवान शिव प्रसन्न हुए और उनकी मनोकामना पूरी की। परंतु भगवान शिव ने कहा कि ये पुत्र या तो यश प्राप्त कर सकता है या फिर दीघार्यु! दंपत्ति ने सर्वज्ञ संतान की इच्छा जाहिर की। महावतारी युगपुरुष के नाम से जाने जानें वाले आदि शंकराचार्य अल्पायु हुए। कहते हैं 820 ईस्वी में महज 32 साल की आयु में आदि शंकराचार्य ने हिमालय क्षेत्र में समाधि ले ली थी। बद्रीनाथ मंदिर के रावल आज इसी वंश के ब्राह्मण होते हैं।
जानकारी के अनुसार आदि शंकराचार्य के पिता का हाथ उनके सिर से बहुत जल्दी उठ गया था। उनकी माता ने उन्हें वेदों के ज्ञान के लिए गुरुकुल भेज दिया था। आदि शंकराचार्य ने महज 8 साल की उम्र में ही वेद, पुराण, रामायण, उपनिषद्, महाभारत सहित सभी धर्मग्रंथ कंठस्थ कर लिए थे।
आदि शंकराचार्य कैसे बने संन्यासी?
पौराणिक प्रचलित कहानियों के अनुसार एक बार की बात है आदि शंकराचार्य नदी में थे, तभी मगरमच्छ ने उनके पैर पकड़ लिए। इसी स्थिति में उन्होंने अपनी मां से कहा कि वे संन्यासी बनना चाहते हैं और साथ में ये भी कहा कि आज्ञा न मिलने तक मगरमच्छ उनके पैर नहीं छोड़ेगा। बेटे के प्राणों की रक्षा करने के लिए मां ने संन्यासी जीवन में प्रवेश की आज्ञा दे दी।
शास्त्रों में लिखा है कि कोई भी संन्यासी आंतिम संस्कार नहीं कर सकता। परंतु आदि शंकराचार्य ने संन्यास लेने से पहले अपनी मां को वचन दिया था और उसका पालन भी किया। विरोध का सामना करते हुए आदि शंकराचार्य ने अपने पुश्तैनी घर के सामने मां का अंतिम संस्कार किया। इस घटनाक्रम के बाद से ही केरल के कालड़ी में घर के सामने ही अंतिम संस्कार करने की परंपरा चली आ रही है।
आदि शंकराचार्य ने 4 धामों में की मठों की स्थापना
देश की चारों दिशाओं में आदि शंकराचार्य ने मठ की स्थापना की। जिसमें से पूर्व में गोवर्धन, जगन्नाथपुरी (उड़ीसा), पश्चिम दिशा में द्वारका शारदामठ (गुजरात), उत्तर दिशा ज्योतिर्मठ बद्रीधाम (उत्तराखंड), दक्षिण में शृंगेरी मठ, रामेश्वरम (तमिलनाडु) में है। इन चारों मठों में आदि शंकराचार्य ने ही सबसे योग्य शिष्यों को मठाधीश बनाने की परंपरा की शुरुआत की थी। उसी समय से इन मठों के मठाधीश को शंकराचार्य की उपाधि दी जाती है।