फिल्म: छिपकली, सस्पेंसिव 3/5
कलाकार : यशपाल शर्मा, योगेश भारद्वाज, तनिष्ठा विश्वास
निर्देशक :कौशिक कर
कहानी
कोलकाता में बसे आलोक चतुर्वेदी एक नॉवेल राइटर हैं. उन्हें अपने बेटे और पत्नी के मर्डर की जुर्म में अदालत से रिहाई मिल गई है. हालांकि पत्नी के भाई को अब भी वो गुनहगार लगता है और वो लेखक के घर भेजता है, जासूस रुद्राक्ष रॉय को. पूरी कहानी इनके बातचीत पर आधारित है. इस दौरान जासूस को कई ऐसी चीजों का पता चलता है, जिससे यह पुख्ता हो जाता है कि लेखक ही असल गुनहगार है. हालांकि फिल्म में एक जबरदस्त ट्विस्ट आता है, जिसका जिक्र कर कहानी को स्पॉइल नहीं किया जा सकता है. खैर, क्या वाकई में चतुर्वेदी ने अपनी बीवी-बेटे का मर्डर किया है? जासूस कैसे इस मिस्ट्री को सॉल्व करता है? और क्या वो ट्विस्ट जानने के लिए आपको थिएटर की ओर रुख करना होगा।
डायरेक्शन
बंगाली सिनेमा के डायरेक्टर कौशिक कर ने छिपकली के रुप में एक एक्सपेरिमेंटल फिल्म बनाई है. कहानी वाकई ट्विस्ट एंड टर्न से भरी है, सस्पेंस लिए फिल्म कई मौके पर आपको चौंकाती है. हालांकि स्क्रीनप्ले के मामले में फिल्म थोड़ी सी कमजोर लगती है. अमूमन दो एक्टर्स के संवादों पर पूरी फिल्म को बांधकर रखना, बहुत बड़ी चुनौती है लेकिन इस साहस के लिए कौशिक को बधाई. उनके इस प्रयास से बाकी के इंडिपेंडेट मेकर्स को एक राह मिलेगी. बहुत ही लिमिटेड बजट और संसाधनों का इस्तेमाल कर फिल्म पूरी हुई है. यकीन मानें केवल दस दिन में फिल्म की शूटिंग कर पैकअप कर दिया गया था. ऐसे में फिल्म का जो प्रेजेंटेशन है, वो अच्छा है. फिल्म की शुरुआत एक सपने से होती है. एक लेखक की इमैजिनेशन की क्या हद हो सकती है, इसी का सार है, छिपकली. किसी के लिए उसके काम का पैशन इतना ज्यादा है कि उसने अपनी एक अलग दुनिया बना ली है. वो किरदारों के साथ ही जीता है, उससे बातें करता है, प्रेम करता है, गुस्सा होता है. खूबसूरत बात यह है कि उसकी इमैजिनेशन में रहने वाले यह किरदार कहीं न कहीं इस असल दुनिया का भी हिस्सा हैं. हालांकि फिल्मों में अक्सर मसाला, एक्शन व ग्लैमर को पसंद करने वाले दर्शकों को यह फिल्म कितना लुभाती है, वो कह पाना मुश्किल है. ओवरऑल एक अच्छी यूनिक तरीके की कहानी को दिखाती यह फिल्म वन टाइम वॉच हो सकती है।
टेक्निकल ऐंड म्यूजिक
ओल्ड कोलकाता के एक कमरे पर बनी इस फिल्म को सिल्वर स्क्रीन पर देखते वक्त महसूस करेंगे कि आप भी उसी कमरे का हिस्सा हैं. सिनेमैटोग्राफर सौरभ बनर्जी द्वारा दर्शाया गया हर शॉट्स आपको कन्विंस करता है. चूंकि फिल्म सस्पेंस लिए आगे बढ़ती है, तो इसके बैकग्राउंड में इस्तेमाल किए गए म्यूजिक इस प्रोजेक्शन में सौ प्रतिशत खरे उतरते हैं. हालांकि मीमो द्वारा दिए गए म्यूजिक में फिल्म का कोई गाना इतना प्रभाव नहीं छोड़ पाता है, जो जेहन में रह सके. एडिटिंग के लिहाज से फिल्म का फर्स्ट हाफ अगर थोड़ा सा क्रिस्प होता, तो कहानी और इंपैक्टफुल तरीके से डिलीवर हो सकती थी।
एक्टिंग
पूरी फिल्म का भार यशपाल शर्मा के कंधे पर था. जिसकी जिम्मेदारी उन्होंने बखूबी उठाई भी. एक एक्टर के रूप में इस फिल्म में परफॉर्मेंस का हर वो स्कोप है, जिसकी ख्वाहिश हर एक्टर को होती है. यशपाल ने भी इस एक्सपेरिमेंट फिल्म का हिस्सा बन अपनी एक्टिंग की लिमिटेशन को एक्सपैंड करते नजर आते हैं. उनका काम कमाल का रहा है. वहीं जासूस रुद्राक्ष के रूप में योगेश भारद्वाज ने भी बेहतरीन काम किया है. यशपाल जैसे मंजे हुए एक्टर के सामने योगेश का कॉन्फिडेंस काबिले तारीफ था. गिव एंड टेक का सिलसिला पूरी फिल्म के दौरान चलता रहा. कहीं भी वे कमतर नजर नहीं आते हैं, बल्कि अपनी मौजूदगी दर्ज करा जाते हैं. हां, यहां बांग्ला एक्ट्रेस तनिष्ठा विश्वास महज एक दो सीन में नजर आती हैं. ज्यादा स्क्रीन स्पेस न मिल पाने की वजह से उनकी एक्टिंग का कोई प्रभाव नहीं पड़ता नजर आता है।
क्यों देखें
एक्सपेरिमेंटल फिल्मों के शौकीन इसे एक मौका जरूर दें. कम संसाधन, कम बजट और कम समय में कैसे एक अच्छी स्टोरी तैयार की जाती है, फिल्म स्टूडेंट्स इससे सीख सकते हैं. ओवरऑल फिल्म वन टाइम वॉच है। एक बेहतरीन परफॉर्मेंस के लिए भी यह फिल्म देखी जा सकती है।