डिजिटल गिरफ़्तारी से बचने के लिए सतर्कता जरुरी —डॉ. उमेश कुमार ✍
डिजिटल गिरफ़्तारी वित्तीय नुकसान के रूप में सामने आई है. यह एक संगठित अपराध होता है जिसमें लोगों को लालच या डर के द्वारा आभासी रूप से गिरफ़्तार किया जाता है. गिरफ्तार व्यक्ति के मोबाइल पर बार-बार कॉल करके उनसे पैसे मांगे जाते हैं और पैसे नहीं देने पर बदनाम करने या प्रतिष्ठा को धुलधुसरित करने की धमकी दी जाती है. इसमें प्रायः शिक्षित या उच्च वर्ग के लोगों को निशाना बनाया जाता है लेकिन अशिक्षित भी इससे बचे हुए नहीं है. डिजिटल गिरफ्तारी में संभावित पीड़ित को फोन आता आती है, जिसमें उन्हें बताया जाता है कि उन्होंने अवैध सामान, ड्रग्स, नकली पासपोर्ट या अन्य प्रतिबंधित सामान वाला पार्सल भेजा है या वे इसके प्राप्तकर्ता हैं। कुछ मामलों में पीड़ित के रिश्तेदारों या मित्रों को बताया जाता है कि पीड़ित किसी अपराध में संलिप्त पाया गया है। एक बार अपराधी, पीड़ित को अपने जाल में फंसा लेते हैं तो फिर उनसे व्हाट्स एप या किसी अन्य वीडियो कॉलिंग प्लेटफ़ॉर्म पर उनसे संपर्क करते थे। वे अक्सर ईडी अधिकारी बनकर, पुलिस की वर्दी पहनकर या पुलिस स्टेशन जैसी लोकेशन वाले बैकग्राउंड के साथ कॉल करते हैं। इसके बाद पीड़ितों को बुरी तरह डराते हैं, जिसके बाद समझौता करने या मामले को बंद करने के लिए पैसे की मांग करते हैं।
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काल्पनिक इमेज |
देश के साइबर क्राइम रिकॉर्ड के आंकड़ों से पता चलता है कि, साल 2024 की शुरुआती कुछ महीनों में ही भारतीयों को डिजिटल अरेस्ट की धोखाधड़ी के जरिए 120.30 करोड़ रुपये की लूट का शिकार बनाया गया है। भारतीय साइबर अपराध समन्वय केन्द्र (आई4सी) ने मई में जनवरी-अप्रैल के आंकड़े जारी करते हुए कहा था कि भारतीयों ने डिजिटल गिरफ्तारी में 120.30 करोड़ रुपये, ट्रेडिंग घोटाले में 1,420.48 करोड़ रुपये, निवेश घोटाले में 222.58 करोड़ रुपये और रोमांस/डेटिंग घोटाले में 13.23 करोड़ रुपये गंवाए। राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (एनसीआरपी) के आंकड़ों से ज्ञात होता है कि साल 2024 में जनवरी से अप्रैल के बीच 7.4 लाख शिकायतें दर्ज की गईं, जबकि 2023 में कुल 15.56 लाख शिकायतें प्राप्त हुईं। 2022 में कुल 9.66 लाख शिकायतें दर्ज की गईं। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार, डिजिटल अरेस्ट के जरिए धोखाधड़ी काफी ज्यादा बढ़ गई है। इस अपराध को अंजाम देने वाले ज्यादातर क्रिमिनल्स दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों, म्यांमार, लाओस और कंबोडिया जैसे देशों में रहते हैं।
देश में 46 प्रतिशत डिजिटल गिरफ़्तारी में वृद्धि वर्ष 2024 में दर्ज की गयी है. यह एक चिंताजनक विषय है. बिना किसी अपराध के व्यक्ति स्वयं को बचाने लगता है और अपराधियों को पैसे दे देता है. भारत सरकार के प्रवर्तन निदेशालय ने ने हांगकांग और थाईलैंड में बैठकर देश में साइबर अपराध के जरिये 159.70 करोड़ रुपये की ठगी करने वाले सिंडिकेट के खिलाफ विशेष अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर दिया है। यह अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क डिजिटल गिरफ्तारी, फर्जी आईपीओ आवंटन और शेयर बाजार में निवेश के जरिये उच्च रिटर्न का वादा कर ठगी को अंजाम देता था। इस मामले में ईडी ने 8 आरोपियों को गिरफ्तार किया था। अपराध की आय को 24 फर्जी कंपनियों के जरिये वैध बनाने का खुलासा हुआ है। ईडी ने यह कार्रवाई मनी लॉन्ड्रिंग की जांच के तहत की। बंगलूरू की विशेष धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) कोर्ट के समक्ष दायर आरोपपत्र में आरोपियों पर धोखाधड़ी वाले एप्स के जरिये से फर्जी आईपीओ आवंटन और शेयर बाजार में निवेश के जरिये आम लोगों को ठगने का आरोप है। जांच में पता चला कि देश में साइबर घोटालों का एक बड़ा अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क है। इसमें फर्जी शेयर बाजार निवेश और डिजिटल गिरफ्तारी करने जैसे साजिशें शामिल हैं। इन गतिविधियों को मुख्य रूप से फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और टेलीग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से अंजाम दिया जाता है।
डिजिटल गिरफ़्तारी का उद्देश्य व्यक्ति को डरा कर पैसे वसूलना होता है। व्यक्ति अपनी प्रतिष्ठा या सम्मान बचाने के लिए अवैध रूप से मांगे गए पैसे का भुगतान करता रहता है. डिजिटल गिरफ़्तारी के प्रति प्रधानमंत्री ने अपने मन की बात कार्यक्रम में भी लोगों को सतर्क रहने के लिए कहा है. उन्होंने कहा कि 140 करोड़ भारतीयों को डिजिटल गिरफ़्तारी से बचने के लिए सतर्क रहना आवश्यक है. किसी प्रकार की कोई फ्राड या अनुचित फोन कॉल पर डरने की अपेक्षा उसका सामना करना चाहिए। जब तक कोई अपराध नहीं किया गया था, कानून के तहत किसी को दण्डित नहीं किया जा सकता है. अपराध में प्रक्रिया का पालन किया जाता है. अतः यह जरुरी है कि हमें सतर्क रहते हुए डिजिटल गिरफ़्तारी से बचना चाहिए।
डिजिटल गिरफ़्तारी से बचने के लिए यह जानना बहुत जरुरी है कि किस तरह से डिजिटल गिरफ़्तारी की जाती है. डिजिटल धोखाधड़ी या डिजिटल गिरफ़्तारी को पहचानने के लिए फोन कॉल पर उपयोग की गयी भाषा पर ध्यान देना जरुरी है। कुछ लोग जुर्माने या फिरौती का भुगतान ऐसे खाते में मांग सकते हैं जो वास्तविक लग सकता है, लेकिन ऐसा है नहीं, ऐसे कॉल को खतरे की घंटी मानना चाहिए। यह कॉल अधिकतर धमकी भरे होते हैं और यह कहा जाता है कि यदि ऐसा नहीं करोगे तो तुम्हारे साथ गलत हो जाएगा. इसी तरह से कभी-कभी अपराधी खुद को पोते-पोतियों या घर के किसी सदस्य के रूप में प्रस्तुत करते हैं और यह बताते हैं कि वह व्यक्ति संकट में है और तत्काल पैसे की जरूरत है. ऐसे में टारगेट परेशान होकर पैसे भेज देता है जबकि ऐसा कुछ नहीं होता है।
डिजिटल गिरफ़्तारी से बचने के लिए सबसे जरुरी है कि किसी भी स्थिति में हमें अपने परिवार के सदस्यों या मित्रों से बात करनी चाहिए। किसी भी कदम को उठाने से पहले यह जरुरी है कि परिवार के सदस्यों को उसके बारे में बताया जाए. यह पूरा खेल डर का होता है और व्यक्ति जितना डरता है उतना फसता जाता है। अपनी बदनामी के डर के कारण हम किसी को भी इसके बारे में नहीं बताते हैं और अपराधी इसी का फायदा उठाते हैं. हमें अपने पासवर्ड को लगातार बदलते रहना चाहिए और मोबाइल पर केवल उपयोग किए जाने वाले एप्लीकेशन ही इंस्टाल करें। डाटा प्राइवेसी एवं अन्य की स्वीकृति देने से पहले यह जाँच लेना चाहिए कि हम किन चीजों की स्वीकृति दे रहे हैं. कई बार अनजाने में बहुत से एप्लीकेशन्स इंस्टाल हो जाते हैं जो हमारी सूचनाओं को अपराधियों तक भेजने का कार्य करने लगता है. मोबाइल हमारी सुविधा के लिए है लेकिन उससे केवल सुविधा ही लेनी चाहिए यदि मोबाइल हमें चलाने लगेगा तो हम गिरफ्तार हो जाते हैं।
डिजिटल गिरफ़्तारी की स्थिति प्रतिवर्ष बढती जा रहे हैं, ऐसे में डिजिटल साक्षरता बहुत जरुरी है। प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान की तरह के कार्यक्रमों को बृहद स्तर पर संचालित किया जाना चाहिए जिससे डिजिटल क्रांति सही मायने में अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त कर सके.
लेखक जन संचार एवं नवीन मीडिया विभाग, जम्मू केन्द्रीय विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत है.
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