फाइटर जेट्स इंजन प्लांट (Fighter Jets Engine Plant)
भारत में GE एयरोस्पेस कंपनी के इंजन मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट को लगाया जाएगा। यानी देश में बनेंगे फाइटर जेट्स के इंजन. इसमें भारत से हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) जीई एयरोस्पेस की मदद करेगी। इस प्लांट में भारतीय वायुसेना (Indian Air Force) के हल्के लड़ाकू विमान तेजस के मेक-2 (LCA Tejas-Mk2) वैरिएंट के लिए इंजन बनाए जाएंगे। यानी भारतीय वायुसेना सशक्त होगी। उसकी ताकत बढ़ेगी।
LCA Tejas-Mk2 के लिए जीई एयरोस्पेस F414 इंजन की जरुरत है. आयात करने में खर्च ज्यादा आता, इसलिए भारत सरकार ने देश में ही प्लांट लगाने की डील की। अब भारत सरकार जीई एयरोस्पेस कंपनी को प्लांट लगाने की जगह, सुविधाएं और इंजीनियर्स देगी. कंपनी इंजीनियर्स की ट्रेनिंग करेगी। इसके तहत जीई कंपनी देश में 99 फाइटर जेट इंजन बनाएगी। इन इंजनों का इस्तेमाल तेजस-एमके2 फाइटर जेट्स में किया जाएगा।
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हथियारबंद ड्रोन्स (Armed Drones)
भारत और अमेरिका के बीच 31 हथियारबंद ड्रोन्स को लेकर समझौता होने की पूरी संभावना है. जिन ड्रोन्स की बात हो रही है, उनका नाम है MQ-9 Reaper. इन्हें प्रिडेटर के नाम से भी जाना जाता है. कई बार इन्हें HALE ड्रोन्स भी कहते हैं. यानी हाई एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्यूरेंस ड्रोन्स. ये दुनिया के सबसे खतरनाक ड्रोन्स में से एक है. इसे जनरल एटॉमिक्स कंपनी बनाती है।
MQ-9 Reaper ड्रोन्स के भारत में आने के बाद उन्हें तीनों सेनाओं के ज्वाइंट कमांड में रखा जाएगा. इन ड्रोन्स के आने के बाद न सिर्फ देश की सीमाओं की सुरक्षा, जासूसी, निगरानी हो सकेगी. बल्कि भारत और अमेरिका मिलकर हिंद महासागर में चीन की नापाक हरकतों पर नजर रख पाएंगे. पाकिस्तान तो किसी तरह की हिम्मत कर ही नहीं सकता. यह ड्रोन दुनिया भर में आतंकियों को मारने और कई युद्धों में विजय हासिल कराने में मददगार रहा है।
इंडस-एक्स की शुरुआत (Setting up INDUS-X)
भारत और अमेरिका मिलकर यूएस-इंडिया डिफेंस एक्सीलेरेशन इकोसिस्टम (INDUS-X) की शुरुआत कर रहे हैं. इस नेटवर्क में दोनों देशों की यूनिवर्सिटी, स्टार्टअप्स, इंडस्ट्री और थिंक टैंक्स को शामिल किया जाएगा. ताकि संयुक्त रूप से रक्षा टेक्नोलॉजी संबंधी इनोवेशन हो सके. रिसर्च हो सके. इसी क्रम में अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस स्पेस फोर्स ने भारत के स्टार्टअप्स 114AI और 3rdiTech के साथ समझौता किया है. ताकि अत्याधुनिक तकनीकें बनाई जा सकें. ये AI और सेमीकंडक्टर्स से जुड़ी तकनीके हैं।
अंतरिक्ष में भारतीय (Indian's in Space)
भारतीय एस्ट्रोनॉट्स को अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (International Space Station - ISS) में अगले साल भेजा जाएगा. इसके लिए भारत और अमेरिका के बीच समझौता हुआ है. भारत ने अर्टेमिस एकॉर्ड्स पर भी हस्ताक्षर करने वाला है. यानी जल्द ही भारत उन देशों की सूची में शामिल हो जाएगा, जो चंद्रमा और मंगल पर इंसानों को भेजने की तैयारी में लगे हैं. यह भारत और अमेरिका का सिविल स्पेस एक्सप्लोरेशन मिशन है।
नासा और इसरो मिलकर साल 2025 में जाने वाले पहले अर्टेमिस मिशन में मिलकर काम करेंगे. ताकि चंद्रमा पर जाने वाले एस्ट्रोनॉट्स पर धरती के हर हिस्से से नजर रखी जा सके. उन्हें कम्यूनिकेशन फैसिलिटी दी जा सके. भविष्य में इस प्रोजेक्ट में मंगल ग्रह पर इंसानों को भेजने की मुहिम भी शामिल है।
साइंटिफिक रिसर्च पर समझौता (Joint Research Collaborations)
भारत और अमेरिका मिलकर 35 इनोवेटिव ज्वाइंट रिसर्च चला रहे हैं. इसमें अमेरिका का नेशनल साइंस फाउंडेशन (NSF) और भारत का डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (DST) शामिल हैं. नए समझौते के अनुसार भारत और अमेरिका कंप्यूटर, इंफॉर्मेशन साइंस, इंजीनियरिंग, साइबर फिजिकल सिस्टम और साइबरस्पेस पर मिलकर काम करेंगे। दोनों संस्थानों की तरफ से फंड मिलेगा। ताकि नेक्स्ट जेनरेशन सेमिकंडक्टर्स, कम्यूनिकेशन, साइबर सिक्योरिटी, ग्रीन टेक्नोलॉजी और इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम पर काम किया जा सके।