वेबिनार का प्रारंभ करते हुए आईपी यूनिवर्सिटी, दिल्ली में पत्रकारिता एवं जनसंचार की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ तनु डांग कहा कि हमें समय के बदलाव को पहचानते हुए राजनीतिक संचार के नैतिक पक्ष की ओर विशेष ध्यान देना होगा। उन्होंने कहा अब हम एल्गोरिदम के प्रयोगों के बाद मिस इनफॉर्मेशन, डिस इंफॉर्मेशन और फेक न्यूज़ से आगे बढ़कर डीप फेक की दुनिया में चले गए हैं जहां सूचनाओं की विश्वसनीयता हमें दिग्भ्रमित कर देती है। उन्होंने सूचना क्रांति के इस युग में विश्वसनीयता स्थापित करने की आवश्यकता भी जताई। उनका मानना था कि राजनीतिक दल युवाओं को प्रेरित करने के लिए इंस्टाग्राम का भरपूर उपयोग कर रहे हैं। राजनीतिक संचार को प्रभावी बनाने के लिए उन्होंने नई शिक्षा नीति के तहत सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम तैयार करने का सुझाव भी दिया।
असम यूनिवर्सिटी, सिल्चर के पत्रकारिता एवं जनसंचार के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ अलफरीद हुसैन ने इस विषय पर प्रकाशित अपनी पुस्तक की विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने सोशल मीडिया से जुड़े आंकड़ों को उद्धृत करते हुए बताया कि, डिजिटल दौर में हमारा पूरा वैल्यू सिस्टम बदल गया है। उन्होंने विभिन्न मॉडल्स की व्याख्या करते हुए इस बात को स्वीकार किया कि चुनाव के संपूर्ण परिदृश्य में अब सोशल मीडिया की भूमिका बढ़ती जा रही है। मीडिया एजेंडा सेटिंग के तहत मतदाताओं को लुभाने के प्रयास भी कर रहा है। उन्होंने कहा यह इंडस्ट्री अब 55 हजार करोड़ रुपए से अधिक की हो गई है। ऐसी स्थिति में इसके प्रभाव और भयावहता की कल्पना सहज रूप से ही की जा सकती है।
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय,भोपाल के खंडवा परिसर स्थित केंद्र में सहायक प्रोफेसर कपिल देव प्रजापति का मानना था कि आम आदमी को जागरूक करने के लिए आवश्यक है मीडिया लिटरेसी का व्यापक प्रचार प्रसार। सोशल मीडिया पर अपलोड की जाने वाली सामग्री की पहचान कर पाने की क्षमता विकसित की जानी चाहिए।
असम ट्रिब्यून, गुवाहाटी के डॉ अरिंदम गुप्ता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ट्विटर के संदर्भ में किए गए अपने शोध के बारे में चर्चा की। उनका मानना था कि सोशल मीडिया ने आम आदमी की सहभागिता को लोकतांत्रिक प्रक्रिया के साथ स्थापित किया है।
भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के पूर्व अधिकारी राजेंद्र भाणावत का मानना था कि सोशल मीडिया ने हमें भ्रमित किया है। राजनीतिक संचार के विशेषज्ञों को इस बात को समझना होगा कि हम लोकतांत्रिक व्यवस्था को कैसे मजबूत बनाएं। डिजिटल डेमोक्रेसी में संवाद की परंपरा यदि बाधित होती है तो वह नुकसान देह होगी। सावधानी मतदाता को बरतनी होगी। आम आदमी विवेकपूर्ण ढंग से निर्णय कर सके यह उसे समझाना होगा। भावनाओं को भड़काने में सोशल मीडिया का उपयोग ज्यादा हो रहा है। हमें डिजिटल डिवाइस की चुनौती को भी समझना होगा। उनका मानना था कि सोशल मीडिया साध्य नहीं साधन हो सकता है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक संचार के कारण हम कम लोकतांत्रिक होते जा रहे हैं। लोकतंत्र के लिए हम खतरा पैदा कर रहे हैं। शासन प्रशासन में पहले हमारी भागीदारी अधिक होती थी। अब हाशिए के लोग धीरे-धीरे बाहर होते चले जा रहे हैं।
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भारतीय जनसंचार संस्थान के पूर्व प्रोफेसर डॉ हेमंत जोशी ने प्रश्न उठाया कि जब अरबों लोग इंटरनेट से नहीं जुड़े हैं तो फेसबुक जैसे सोशल मीडिया के प्लेटफार्म कितना प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं? उनका मानना था कि समाज के उपेक्षित वर्ग तक हम प्रभावी ढंग से नहीं पहुंच पा रहे हैं। यह लोकतंत्र की सबसे बड़ी कमजोरी है। भारत जोड़ो यात्रा तथा किसान आंदोलन मूल रूप से इंटरनेट विरोधी हैं। इन आंदोलनों में वे फेसबुक, इंस्टाग्राम से एकत्रित नहीं हुए हैं। उनके राजनीतिक हितों पर जो आक्रमण हुआ है उससे प्रभावित होकर वे लोग एक जगह एकत्रित हुए। इंस्टाग्राम, प्रोपेगेंडा, मिस इनफॉर्मेशन आदि पॉलिटिकल कम्युनिकेशन के हिस्से हैं। सोशल मीडिया के कुछ सकारात्मक उदाहरणों के आधार पर हम यह नहीं मान सकते कि सरकार और जनता आपस में जुड़ रहे हैं। यहां मीडिया लिटरेसी कोई विशेष उपयोगी नहीं है।
इस चर्चा में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के लाल बहादुर ओझा तथा बेंगलुरु की तूलिका ने भी अपने विचार प्रकट किए।
वेबिनार का संचालन कम्युनिकेशन टुडे के संपादक तथा राजस्थान विश्वविद्यालय के जनसंचार केंद्र के पूर्व अध्यक्ष प्रो संजीव भानावत ने किया। उन्होंने विषय की पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए कहा कि आज डिजिटल क्रांति के दौर में राजनीतिक दलों ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का उपयोग करते हुए अपने राजनीतिक विचारों, प्रतिबद्धताओं और नीतियों को आम आदमी तक पहुंचाने के लिए नए नए विकल्प तलाश लिए है। 2014 और 2019 के आम चुनावों में सोशल मीडिया की भूमिका का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इन माध्यमों का उपयोग नेताओं को जवाबदेह बनाने के लिए भी किया जा सकता है।
वेबिनार का तकनीकी पक्ष आईआईएमटी यूनिवर्सिटी, मेरठ की मीडिया शिक्षक डॉ पृथ्वी सेंगर ने संभाला। वेबिनार में देश-विदेश के 290 प्रतिभागियों ने अपना रजिस्ट्रेशन कराया।
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