हर रोज बैरक की जांच
अब सवाल ये है कि ऐसे हथियारों को बनाने में काफी समय लगता है, क्योंकि इसके लिए पत्थर पर कई दिन तक घिसना पड़ता है, जबकि जेल प्रशासन रोजाना हर बैरक की जांच करता है. फिर इस तरह कैसे जेल प्रशासन को इस सबकी भनक नहीं लग पाती? या फिर जेल में सब कुछ मिलीभगत से चल रहा है?
मंगलवार को तिहाड़ जेल में गैंगस्टर टिल्लू ताजपुरिया की हत्या कर दी गई थी। यह इस तरह का कोई अकेला मामला नहीं है, बल्कि साल दर साल यहां ऐसी वारदातें होती रही हैं. टिल्लू का कत्ल पिछले 19 दिनों में तिहाड़ जेल में हुई दूसरी वारदात है, जब कैदियों ने गैंगवार में किसी की जान ली है। अब से चंद रोज पहले तिहाड़ के अंदर ऐसे ही प्रिंस तेवतिया की जान ले ली गई थी।
जेल में कभी भी हो सकती है गैंगवार
असल में तिहाड़ में दिल्ली-एनसीआर समेत उत्तर भारत के अलग-अलग गैंग एक-दूसरे के साथ गठजोड़ बना कर क्राइम सिंडिकेट की तरह काम कर रहे हैं और अपनी-अपनी सुविधा के हिसाब से ये सारे गैंग एक-दूसरे से दुश्मनी रखते हैं. इनमें से ज्यादातर गैंग के या तो गुर्गे या फिर सरगना अब भी तिहाड़ जेल में बंद हैं. ऐसे में जेल के अंदर कभी भी फिर से गैंगवार हो सकती है।
जेल में दो गुटों के बीच होता रहा है टकराव
दिल्ली पुलिस कि रिकॉर्ड के मुताबिक, एक तरफ लॉरेंस बिश्नोई गैंग, काला जठेड़ी गैंग, जितेंद्र गोगी गैंग, राजस्थान का आनंदपाल गैंग और सुब्बे गुर्जर गैंग का एक सिंडिकेट है. वहीं दूसरी ओर देवेंद्र बंबीहा गैंग, नीरज बवाना गैंग, टिल्लू ताजपुरिया गैंग, संदीप ढिल्लू गैंग और हरियाणा का कौशल जाट गैंग एकजुट होकर मोर्चा लिए खड़ा है।
ये सारे के सारे गैंग अक्सर एक दूसरे को चुनौती देते रहते हैं और एक दूसरे से खून के प्यासे हैं. इन्हीं गैंग्स के गुर्गे दशकों से तिहाड़ जेल में एक दूसरे से टकराते और उनकी जान लेते रहे हैं। जेल के बाहर और जेल के अंदर शह मात का सिलसिला जारी है।