प्रियंका चोपड़ा और रिचर्ड मैडन की स्पाई-थ्रिलर सीरीज 'सिटाडेल' के पहले दो एपिसोड्स आ चुके हैं. इसमें एक सीक्रेट एजेंसी और उसके एजेंट्स की कहानी दिखाई गई है। शो से जनता को एक स्पाई किरदारों और सॉलिड एक्शन की उम्मीद थी। क्या 'सिटाडेल' इन उम्मीदों पर खरा उतर पाया? आइए बताते हैं इस रिव्यू में।
कलाकार : प्रियंका चोपड़ा, रिचर्ड मैडन, स्टैनले टूची
निर्देशक :न्यूटन थॉमस सिगेल
इंडियन ऑडियंस के तौर पर अमेजन प्राइम विडियो का 'सिटाडेल' देखने की सबसे पहली वजह है 'हमारी अपनी' प्रियंका चोपड़ा का शो में होना। लेकिन एक इंटरनेशनल स्पाई थ्रिलर-एक्शन ड्रामा देखने की एक्साइटमेंट सिर्फ इस एक वजह से होना, अपने आप में बताता है कि एंटरटेनमेंट के थर्मामीटर पर शो का तापमान कितना है! पिछले कुछ सालों में स्पाई स्टोरीज में बेचारी खुफिया एजेंसीज देश-दुनिया को बचाने से ज्यादा अपने अस्तित्व को लेकर टेंशन में जी रही हैं। फिर वो ईथन हंट (टॉम क्रूज) वाली इम्पॉसिबल मिशन फोर्स हो जेम्स बॉन्ड की ब्रिटिश सीक्रेट सर्विस। 'सिटाडेल' का मतलब होता है किला और शो की कहानी ही इस किले यानी सीक्रेट एजेंसी के ढहने से शुरू होती है। सिटाडेल के दो टॉप क्लास एजेंट पहले 15 मिनट एक ट्रेन में किसी टारगेट को ट्रेस करते हुए नजर आते हैं।आधे एपिसोड में ही आपको समझ आ जाता है कि पूरे शो में आपको, आपकी देखी हुई पिछली सारी स्पाई थ्रिलर्स याद आने वाली हैं।
केन और नाडिया की केमिस्ट्री उतनी ही दमदार है जितनी एक पार्टी में गलती से मिल गए एक्स-लवर्स की लगती है। लेकिन इससे उबरने का मौका जल्दी ही मिलता है जब ट्रेन का एक्सीडेंट होता है। इस पूरे प्लान के पीछे एक बड़ा क्राइम सिंडिकेट मांटीकोर है, जिसकी बॉस का नाम डाहलिया (Lesley Manville) है। कहानी में सीधा 8 साल का जंप आता है और अब केन एक घरेलू आदमी है जिसे पिछला कुछ याद नहीं है। अगर केन इसी तरह रहता तो शायद एक बेहतरीन कॉमेडी ड्रामा का प्लॉट हो सकता था, लेकिन शो स्पाई थ्रिलर है इसलिए जल्दी ही उसे उसका पास्ट याद दिलाने बर्नार्ड पहुंच जाता है। और साथ में एक छोटा सूटकेस टाइप डिवाइस भी लाया है, जिसमें एजेंट्स की मेमोरी और एजेंसी की डिटेल्स वगैरह हैं। बर्नार्ड के हिसाब से अब वो दोनों ही सिटाडेल के बचे हुए एजेंट्स हैं।

शो का हाल-समाचार स्पाई थ्रिलर कहानियों में सबसे दिलचस्प ये होता है कि एक पॉइंट के बाद बेसिक प्लॉट दर्शक डीकोड कर लेते हैं। सारा मजा बस इस बात का रह जाता है कि स्क्रीन पर जो घट रहा है, वो कैसे घट रहा है। ये एक ऐसा जॉनर है जिसमें मेकर्स के पास स्क्रीन पर सबसे लॉजिक-विहीन, कॉमनसेन्स-विदारक हरकतें करने का स्कोप होता है। इतनी लिबर्टी मिलने के बाद कम से कम स्टोरी के ट्विस्ट-ओ-टर्न तो ऐसे होने चाहिए कि उसका अंदाजा पहले से न हो पाए। 'सिटाडेल' इस मामले में चूक जाता है। पहला एपिसोड आधा खत्म होने तक पूरा प्लान क्लियर हो जाता है।
मेकर्स ने 'सिटाडेल' के दो ही एपिसोड्स इस शुक्रवार रिलीज किए हैं और बाकी 4 एपिसोड्स एक-एक कर हर हफ्ते रिलीज होंगे. लेकिन पहले दो एपिसोड्स के बाद आंखों पर ठंडे पानी के छींटे मारते हुए सबसे पहला ख्याल यही आता है कि अगले 4 एपिसोड्स का इंतजार करेगा कौन?
परफॉरमेंस
'गेम्स ऑफ थ्रोन्स' से खूब पॉपुलर हुए रिचर्ड मैडन को फैन्स काफी लंबे समय से अगला जेम्स बॉन्ड बनते देखना चाहते हैं. लेकिन अगर 'सिटाडेल' रिचर्ड का 'जेम्स बॉन्ड' ऑडिशन है तो ये बहुत खेद के साथ फैन्स को सूचित करना पड़ रहा है कि उन्हें तो ये रोल नहीं मिलने वाला. उनके पास 'दुनिया खतरे में है लेकिन मुझे नहीं पता मैं क्या करूं' का कन्फ्यूजन वाले वही डेढ़ एक्सप्रेशन हैं।
मिशन इम्पॉसिबल, जेसन बॉर्न, जेम्स बॉन्ड, किंग्समेन वगैरह जैसी पॉपुलर होकर घिस चुकीं स्पाई-थ्रिलर कहानियों को एक आखिरी बार जूसर में डालकर निचोड़ने से 'सिटाडेल' जैसा कुछ हासिल होता है। एक स्पाई एक्शन वाले शोज से आपको पाथ-ब्रेकिंग ट्विस्ट और एक्शन सेट पीस की उम्मीद रहती है। मगर 'सिटाडेल' हार्ट-ब्रेकिंग ज्यादा फील होता है। हाांलांकि, पहले दो एपिसोड्स से ही इतने क्रूर नतीजे पर पहुंचना थोड़ी जल्दबाजी जरूर लगती है. मगर 6 एपिसोड्स की सीरीज का एक-तिहाई हिस्सा देखने के बाद आपको भी लगेगा कि ये जल्दबाजी थोड़ा समय बचा सकती है!