कर्नाटक में जीत-हार का मुद्दा
कर्नाटक की जीत के साथ ही कांग्रेस ने यह संदेश देना शुरू कर दिया है कि इस साल पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और सामाजिक न्याय के प्रमुख मुद्दे पर ही लड़ेगी। इसके अलावा लोकलुभावने यानि मुफ्त योजना की गारंटी के वादे के दम पर बीजेपी को मात दी जा सकती है।
वहीं, कर्नाटक में हार के बावजूद बीजेपी हिंदुत्व,विकास और मोदी फैक्टर के भरोसे चुनावी रथ पर सवार है। कर्नाटक में निराश होने के बावजूद अपने कार्यकर्ताओं को यह संदेश दे रही है कि हार-जीत लगी रहती है। पांच राज्यों के चुनाव में नई रणनीति और नए एजेंडे के साथ उतरने की रणनीति पर कदम बढ़ा रही है। इतना ही नहीं बीजेपी क्या नेतृत्व के मामले को अपनी तस्वीर आगामी चुनाव में करेगी?
मोदी बनाम राहुल की लड़ाई नहीं बनी
कर्नाटक में बीजेपी नेतृत्व को लेकर दुविधा में रही और किसी भी चेहरे को आगे कर चुनाव नहीं लड़ सकी थी जबकि कांग्रेस डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया के चेहरे पर चुनावी मैदान में थी। बीजेपी की कोशिश मोदी बनाम राहुल के बीच कर्नाटक चुनाव कराने की थी, लेकिन कांग्रेस अपने स्थानीय नेताओं के सहारे मैदान में डटी रही।
बीजेपी मोदी के नाम और काम के साथ-साथ राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़ी थी जबकि कांग्रेस स्थानीय और सामाजिक न्याय के मुद्दे पर अड़ी रही। वहीं, बीजेपी को पांच राज्यों में स्थानीय नेतृत्व को लेकर रुख साफ अभी तक साफ नहीं किया। माना जा रहा है कि बीजेपी पीएम मोदी के चेहरे और काम पर चुनावी मैदान में किस्मत आजमा सकती है, लेकिन कांग्रेस राहुल गांधी के बजाय अपने स्थानीय नेताओं को ही आगे कर चुनावी बाजी जीतने की रणनीति पर काम कर रही है।